Changes

}}
<poem>
पिनकू हा अगिया के बोलिस -”मंय जानत हंव तंय अस कोनतंय, खोरबहरा अस जानत हंव, अगर असच तब बात ला काट।मोर पास तंय अतका फुरिया, कार बने स्वामी संतसब ला गलत ज्ञान देवत हंस – काबर नइ छोड़स फरफंद?”खोरबहरा मन मं सोचिस – यदि मंय नइ भरिहंव हामीं।पिनकू हा सब पोल खोलिहय – मंय परिहंव बदनामी।बोलिस – “धन बिन जमों अबिरथा, मगर करेंव ओकर हिनमानझूठ गोठ ला सब तिर फइला, रिता जेब ला ठंस भर देव।यदि मंय ककरो तिर जातेंव अउ, रुपिया बर फइलातेंव हाथमोर मदद एक झन नइ करतिस, ऊपर ले चटकातिस माथ।बहुत सोच के संत बने हंव, बकना परथय मुंह फटकारएमां देह करय नइ मिहनत, यश धन आथय बन के धार।छेरकू जउन कार्यक्रम रख दिस, ओहर घलो लाभ ला पात –जनता मं चर्चित हो जाथय, पूर्ण करत हे खुद के स्वार्थ”।खोरबहरा, पिनकू ला छोड़स, फिर आ गीस अपन स्थानरुपिया मन ला गिन थय चुप चुप, लुका के राखिस जीव समान।तभे हठील पहुंच गिस उंहचे, खोरबहरा ला दीस अवाज –“मंय अंव चुनू दउड़ आए हंव, तोर पास आवश्यक काम”।खोरबहरा हा मन मं सोचिस – काबर चुनू मोर तिर अैासओकर कते बुता हा अरझिस, जेमां जोर अवाज लगैस?”खोल कपाट देखथय बाहिर, लेकिन हांसत खड़े हठीलफट हठील हा अंदर जाथय, मांस खाय बर कर्री चील।खोरबहरा अचरज कर पूछिस -”तंय काबर बोले हस झूठका कारन तंय इहां आय हस, मोला बता भला तंय छूट?”क्रूर हंसी हंस हठील बोलिस – “तंय अस ज्ञानिक स्वामी संतधन ले तंय हा घृणा करत हस, भौतिकता के चहथस अंत-मगर शुद्ध भौतिकवादी मंय, प्रेम से राखत हंव हर चीजअभी चढ़ौत्री जेन पाय हस, मोर हाथ पर रख बिन खीझ”।खोरबहरा सकपका के कहिथय – “रुपिया पाय कष्ट ला झेलअपन हाथ मं करन सकंव नइ, अपन कमाय नोट ला नष्ट”।“मादक जिनिस के धंधा करथंव, तेकर तंय हा करत विरोधपर तंय खुद कुराह पर दउड़त, ओकर मंय लेहंव प्रतिशोध”।वाद विवाद दुनों मं बढ़ गिस, तंह हठील पर चढ़गे भूतखोरबहरा पर वार करिस अउ, प्रान हरिस बनके जमदूत।सब रुपिया ला कब्जा करके उहां ले निकलिस पापी।अइसन हतियारा मनसे ला कोन हा देहय माफी।गीस अंजोरी – घर हठील हा, मगर कहां ओकर संग भेंटदुकली जेन अंजोरी के बहिनी, ओकर संग मं होगिस भेंट।दुकली ला हठील हा देखिस, फट ले आकर्षित होगीसदुकली हा नीयत ला ताड़िस, घर ले बाहिर निकलिस शीघ्र।सक्का पंजा चल नइ पाइस, तंह हठील छोड़िस ओ ठौरमंय हा कथा ला छेंकत हंव कुछ, पाठक मन हा धर लव घीर।चइती अपन राह पर जावत, मगर एक ठंव रोकिस गोड़उही पास चकला घर एक ठक, अंदर घुसिस अपन मुंह मोड़।लड़की मन सज संवर सुघर अक, हंस गोठियात मरद के साथचइती ला लड़की मन देखिन, ओकर तिर पहुंचिन धर पांत।चइती हा ओमन ला पूछिस -”कार करत तन के व्यापारएमां तो इज्जत हा जाथय, जीवन तक हो जाथय ख्वार।”माला बोलिस -”काय कहन हम – धर के पेज खोजे हन कामलेकिन कहुंचो ठिंहा मिलिस नइ, तब धर लेन गलत अस काम।होत पुरुष मन क्रूर भयंकर, एकोकनिक मरंय नइ सोगउनकर अत्याचार के कारन, हमला होत गिनोरिया रोग।”“मानत हंव मंय तुम्हर विवशता, युवती मन किंजरत बेकारलेकिन एकर ए मतलब नइ, धथुवा धरव तन के व्यापार।बुता बुता कहि चिल्लावत हव, चलव मोर संग मं अभि गांवउहां श्रमिक के अड़बड़ कमती, तुम्मन पहुंच के काम बजाव।यद्यपि उहां मिलन नइ पावय, सक ले बाहिर श्रम के दामपर भोजन अउ कपड़ा मिलिहय, अतका आश्वासन मंय देत।”रुपा बोलिस -”हम जानत हन – तंय बतात हस बिल्कुल सत्यलेकिन काबर गांव मं जावन, हमरे बर ए नरक हा स्वर्ग।खर्च सौंख हा बढ़े खूब तक, ओकर पूर्ति इहें हो पातए माहौल हमर बर रुचिकर, कम बेरा मं अधिक कमात।शासन हमला धर के लेगिस, उहां कड़ाकड़ा ले बंध गेनपर हम भाग इहां लहुटे हन, तब ले लगथय बने अजाद”।चइती सुनिस नया व्याख्या जब, अचरज मं भर होगिस दंगकहिथय -”तुम गल्ती रद्दा पर, अपन हाथ होवत बर्बाद।तब फिर तुम्मन काबर डारत – मरद गरीबी पर सब दोषनारी जात कलंक हवव तुम, कोन मरय तुम पर अफसोस!लेकिन मंय अतका फोरत हंव – सूरा हा मल ला डंट खाययद्यपि ओकर जीवन चलथय, पर वृष्टा जेवन नइ आय।सूरा हा श्रम गर्त ले उबरय, भोजन खोजय अन्य प्रकारइसने तुम्मन इहां ले उबरव, अपन भविष्य के करव सुधार।”ओतकी मं हठील हा आइस, होवत खुश चइती ला देखकहिथय -”आज पता होइस सच – तोर चरित्र हा कतका साफ!एकर पहिली तंय बोले हस – मंय हा दूसर ले बेदागमगर लुका के धंधा करथस, चोरी करथय लुकछिप काग।लेकिन तंय हा उचित करत हस, अपन खर्च बर रुपिया सोंटमंय प्रसन्न हंव देख के तोला, धंधा करत जउन कर ओंट।मंय अपराध तोर अस करथंव तब मंय रखथंव आसा।अंड़े बखत मं मदद अमरबे – झन डबकाबे लासा।
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits