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अब टोनही मन पांचों झन ला, बना के रखिहंय रक्सा भूततंह जीयत ला भूत धराहंयठेपू कथय -”बिकट मनसे हस, तंय हस मित्र निघरघट जीव घलो लेहंय कर नेत।”पिनकू कुछ मुसका गोल्लर अस अंड़िया के बोलिस -”घर रेंगत, सब ला लेत अंधविश्वासरखत कांरव मं दाब।”एकर होत विरोध खूब जमबेदुल के अब कान पिरावत, तभो ले आखिर बनथन दास।खेदू के सुन क्रूर घमंडएकर पर विश्वास करत शिक्षित वैज्ञानिक ज्ञानी।बेदुल के नकडेंवा चढ़गे, ओहर सवा सेव बन गीस।सत्य बतातिन तेमन पीयत – टोना रुढ़ि खेदू ला भन्ना के मानी।पूछिस -”तंय अस कोन करत का कामएकर बाद चलिस पिनकू मंय हाचहत तोर सच परिचय, देखत हवय ताकि तोर जस हर ठंव गांव के काम –?”परब देवारी तिर मं आवतखेदू कहिथय – “पिया चुके हंव, मनसे मन मोर शक्ति ला सब के बंद अराम।कानदेवारी के अड़बड़ बूतापर अब गर्व साथ खोलत हंव, ककरो उल नइ पावत ओंठमोर सिंहासन कतका ऊंच!मांईलोगन मन भिड़ पोततमंय करथंव अपराध बेहिचक, फूल उतारत भिथिया कोठ।मोला जम्हड़ लेत कानूनदूसर दिन पिनकू के संग मंपुलिस अदालत प्रकरण चलथय, मेहरुके फट होगिस भेंटखेदू पाय कड़ाकड़ दण्ड।पिनकू हा रचना पर मंय साक्षी ला हेरिसफोरत हंव, कर दिस मेहरुके अधिकार।या धमकी झड़ खेदत दूरकहिथय -”तोर स्तरीय रचनाजब आरोप सिद्ध नइ होवय, रखे जउन मं उच्च विचारमंय निर्दाेष प्रमाणित होत।”ओला जहरी हा लहुटा दिस, छापे बर कर दिस इंकार।खेदू टेस बतावत पर बेदुल कांपत जस पाना।एकर ले तोर हालत कइसे, होवत हस का बहुत निराशआखिर जब सइहारन मुस्कुल क्रोध फुटिस बन लावा।तंय भविष्य मं रचना लिखबेभड़किस – “रोक प्रशंसा ला अब, या लेखन ला करबे बंद?”मेहरुहंस अति के उत्तर देथय -”करत कृषक मन कृषि अंत होय के कामटेममिहनत कर नंगत व्यय करथंयपांप के मरकी भरत लबालब, पर फल मं पावत नुकसान।तभे हमर अस लेवत जन्म।”पर कृषि कर्म खेदू के टोंटा ला कभु नइ छोड़यपकड़िस, चलत राह पर कर उत्साहअपन डहर झींकिस हेचकारसाहस करके टेकरी देवतभिड़ के शुरुकरिस दोंगरे बर, तभे विश्व ला मिलत अनाज।सरलग चलत मार के वार।उही कृषक के तिर मंय बसथंवहा बइला ला गुचकेलत, तब उत्साह रखत हंव पासडुठरी ला कोटेला दमकातकतको रचना लहुट के आवतबेदुल हा खेदू ला झोरत, मगर दूर मं रहत निराश।यद्यपि अपन हंफर लरघात।सम्पादक रुढ़िवादी होथंय – युग खेदू ला छोड़ चलत हें राहसमय विचार बदल जाथय जबभुइया मं पटकिस, तब ओला करथंय स्वीकार।ओकर वक्ष राख दिस पांवचर्चित अउ परिचित लेखक खेदू लाबरनिया के देखत, सम्पादक मन स्वीकृति देतखुद के परिचय साफ बतात –उनकर रचना “मरखण्डा ला नइ जांचंयमंय पहटाथंव, भले लेख होवय निकृष्ट।हत्यारा के लेथंव प्राणसम्पादक शोषक के कुर्सी पावतमंय शोषण करथंव, तंहने खुद ला समझत श्रेष्ठमंय खुश होवत ओला लूट।श्रेष्ठ लेख न्यायालय समाज पंचायत, शासन साथ पुलिस कानूनएमन अपराधी ला टुकनी फेंकतछोड़त, साहित्यिक कृति करथंय नष्ट।यने दण्ड देवन नइ पांय।साहित्य मं परिवर्तन आथयतब मंय हा जघन्य मुजरिम ला, तउन अपन हाथ ले सम्पादक अनभिज्ञदेवत दण्डलेखक जउन करत परिवर्तनओकर नसना रटरट टूटत, ओहर खावत हे दुत्कार।”मंय मन भर पावत संतोष।”मेहरुहा ठसलग गोठिया केमनसे भीड़ कड़कड़ा देखत, उहां ले सरके करिस प्रयासमगर करत नइ बीच बचावपिनकू पूछिस -”कहां चलत हसदृष्य के करत समीक्षा, मोर पास कुछ समय तो मेट?चम्पी तक हा झोंकिस राग –देवारी हा लकठा आगे“खेदू हे समाज के दुश्मन, जावत शहर फटाका लायपथरा हृदय बहुत हे क्रूरनंगत ओकर दउहा मिटना चहिये, तब समाप्त जग अत्याचार।बेदुल असन बिसा के लाबेबनंय सब मनसे, हमूं जेन करत एक तौल नियावअपराधी ला देबे धांय बजाय।”दण्डित करथय, दीन हीन ला प्रेम सहाय।”मेहरुकिहिस -”मोर तब मेहरुहा बहल ला सुन तंय बोलिस मंय खैरागढ़ जावत आज“फोर पात नइ अपन विचारघुरुवा मन के चलत अदालतपक्ष विपक्ष कते तन दउड़ंव, ओकर अंतिम निर्णय आज।दूनों बीच कलेचुप ठाड़।एकर पहिली बल्ला मालिक, घुरुवा मन अनियायी के बनिन गवाहमुजरिम मन हा बच जावय कहिभरभस टूटय, ओमन बोल अत्याचार के हेरिन राह।बिन्द्राबिनासमेहरुहवय तेन तिर पहुंचिन – बिरसिंग मगन घुरुवा बिसनाथएमन अब खैरागढ़ जावतपर समाप्त बर कते तरीका, बपुरा मन असहाय अनाथ।भूमि लुकाय कंद अस ज्वाप।न्यायालय के तिर मं पहुंचिनअपराधी शोषक परपीड़क, खेदू संग होगिस मुठभेड़पापी जनअरि मनखेमारखेदू इनकर नसना ला बिसनाथ हा पूछिस -”साफ फोर तंय खुद के हाल।तंय अपराध करे हस कइ ठकटोरे बर, न्यायालय का दण्ड ला दीसदीन – जीवन हर लीन।कतका रुपिया के जुर्मानातउन क्रांतिकारी ईश्वर बन, कतका वर्ष के कारावास?”सब झन पास प्रतिष्ठा पैनखेदू बफलिस -”अटपट झन कहउनकर होत अर्चना पूजा, तुम्हर असन मंय नइ अभियुक्तकवि मन लिखिन आरती गीत।मोर बिगाड़ कोन हा करिहयपर एकर फल करुनिकलगे, मंय किंजरत फिक्कर ले मुक्त।गलत राह पकड़िन इंसानछेरकू हा आश्वासन देइस ओला कर दिस पूरा।जतका अपराधिक प्रकरण तेमन बह गिन जस पूरा।यने राज्य हिंसा युद्ध बढ़िस दिन दूना, शासन वापिस लिस – जनहित मं अपराध ला मोरकरिस अशांति तबाह।न्यायालय हा धथुवा रहिगेजइसन करनी वइसन भरनी, मोर उड़त सब दिशा मं सोर।”पालत अगर इहिच सिद्धान्तबिरसिंग कथय -”समझ ले बाहिरबम के बदला बम हा गिरिहय, राख बदल जाहय संसार।”आगी हा जब तंय वास्तव मं अभियुक्तबरत धकाधक, रोटी सेंके बर मन होतअर्थदण्ड अउ जेल मं जातेसबहल के मन होवत बोले बर, पर हरहा हेरत बचन धान अस किंजरत मुक्त।ठोस-हम निर्दाेष हवन सब जानत“आग ला’ अग्नि शमन दल, तभो ले फांसत हे कानूनहम्मन निर्णय मं हा पावत – इही सोच तन रोकत, रुकत तबाही होवत सून।”शांतघुरुवा मन तइसे नवा राह हम ढूंढन, तब संभव जग के समय अैमस कल्याण।”झंझट चलत तउन अंतिम तंह, न्यायालय के अंदर दुनों विश्वविद्यालय गीनइनकर निर्णय ला जाने बरउहां रिहिस ढेला कवियित्री, कतको मनसे भीतर गीन।तेकर साथ भेंट हो गीस।मोतिम न्यायाधीष उपस्थितिढेला उंहचे करत नौकरी, मुजरिम मन कटघरा पाय प्रवक्ता पद जे उच्चओकर रुतबा सब ले बाहिर, लेकिन रखत कपट मं ठाड़दाब।इंकर हृदय ढेला हा धकधक होवत – अब तब टूटही बिपत पहाड़।मेहरुला बोलिस -”मोर नाम चर्चित सब ओरहरिन डरत हे देख शिकारीदैनिक पत्र हा स्वीकृति देथय, मछरी डरत देख के जालकई ठक पुस्तक छपगे मोर।टंगिया देख पेड़ थर्राथयदिखत दूरदर्शन मं मंय हा, हंसिया ले भय खात पताल।मिंहिच पाठ्य पुस्तक मं छायन्यायाधीष देत समीक्षक मन हा निर्णय देइस – “हाजिर हें अपराधी जेनइज्जत, साहित्य मं प्रकाशित नाम।”तुम पर चार लगे हे धारागांव के लेखक आय बहल हा, जेहर एकदम कड़कड़ ठोस।चुपे सुनत ढेला के डींगपांच सौ छै बी- तीन सौ एकचालिसजतका ऊंच डींग हा जावत, एमन दुनों सिद्ध नइ होयउसने बहल के फइलत आंख।तब आरोप मुड़ी जब ढेला हा उहां ले बाहिरहटगिस, दण्ड करन पावत नइ बेध।बहल अैेस मेहरुके पासतीन सौ तिरपन – दू सौ चौरनबेपूछिस -”ढेला जे उच्चारिस, ए अपराध प्रमाणित होयओमां कतका प्रतिशत ठीक?”हर अभियुक्त जेल ला भोगव – गिन दू साल माह बस तीन।मेहरुकथय -”किहिस ढेला हा, तेन बात हा बिल्कुल ठोसअजम वकील सन्न अस रहिगेशिक्षा उच्च पाय मिहनत कर, अभिभाषक कण्टक मुसकातसंस्था उच्च पाय पद उच्च।मुजरिम मन कारागृह जावतपर अचरज के तथ्य मंय राखत, जेला “नरख’ कथंय सब लोग।जीवन पद्धति राखत खोल –न्यायालय ले निकलिस मेहरुसंस्था परिसर रहत रात दिन, मिलिन बहल बेदुल दू जीवपुस्तक संग संबंध प्रगाढ़।बेदुल हा खेदू अपन ला खोजतप्रतिष्ठित समझत हें, अपन साथ रख पसिया पेज।जन सामान्य ले रहिथंय दूरमेहरुचहत बात कुछ कहनाउंकर पास नइ खुद के अनुभव, पर बेदुल के पांव चलत हें राह।कथा ला पढ़ के लिखत कहानी, पर तन ध्यानके दृष्य विचार चुरातआखिर मं खेदू समय हा मिल गिसपरिवर्तित हो जावत, ओकर बढ़े भयंकर रौब।तेकर ले ओहर अनजान।मनखे मन जुरियाय तिंकर तिरभूतकाल के कथा जउन हे, ओला वर्तमान लिख देतअपन शक्ति के मारत डींगसमय ला पहिचानय नइ, कहां ले लिखहीं सत्य यथार्थ!”दमऊ के टोंटा मेहरुबात चलावत जावत, तभे बहल ला चपके बरमारिस रोक –“जेन काम दूसर मन करथंय, दफड़ा करथय उहिच काम तंय तक धर लेस।उच्च विशिष्ट जउन मनसे हे, उंकर होत आलोचना खूब अवाज।खेदू किहिस -”खूब मंय उंकरेच बाद प्रशंसा होवत, आखिर चर्चित, दैनिक पत्र मं छपगे नामउंकरेच नाम।मंय सिंचित भूमि मं किसान मन हा कतको जुरुम करे हंव, कई जन डारत बीज लान के मारे हंव जान।कर्जभाजी भांटा ला पोइलत तब – आत्मा उहिच भूमि मं न कसक न पीरमनसे ला नंगत झोरिया केकरत किसानी, मंय पावत हंव नव उत्साह।”नफा होय या हो नुकसान।ओ तिर खड़े हवंय जे मनखेभूमि कन्हार जमीन असिंचित, क्रूर कथा सुन आंख घुमातउनकर रुआं खड़े होवत डर, मन मन कांपत पान समान।एला देख भगात किसान
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