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|सारणी=गरीबा / नूतन प्रसाद शर्मा
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<poem>
सबके घर मं चुरे पके हे – नुनहा गुड़हा रोटी आज
ठेठरी पुड़ी करी के लाड़ू, याने जेकर तिर जे शक्ति।
कुछुच फिकर नइ-मन आनंदित, इंकर मुड़ी पर सुख के ताज
चुरे जिनिस ला सबझन खावत, दूसर तक ला बांट बिराज।
अब मनसे मन हा सकलावत, गउराचंवरा तेकर पास
कई प्रकार के रंग धरे सब, ओकर संग मं धरे गुलाल।
दुश्मन मित्र के भेद खतम हे, प्रेम करत हे मन ला चंग
एक दुसर ला कबिया के धर, ओकर ऊपर डारत रंग।
कतको झन मन गोलिया बइठिन, बाहिर लावत मन उत्साह
बजत नंगारा कई ठक बाजा, जोश मं उठ उठ गावत फाग –
“अरे सर रर सुन ले मोर मितान
फागुन मस्त महीना संगी उड़गे रंग गुलाल
आगू आगू राधा भागे पाछू में नंदलाल
 
बारामासी
 
फागुन मस्त महीना अरे संतो,
फागुन मस्त महीना रे लाल
चारे महिनवा पानी गिरत हे
पानी गिरत हे हो पानी गिरत हे
टपटप चुहे ला झोफड़िया हो
टपटप चुहे ला झोफड़िया अरे संतो
फागुन मस्त महीना रे लाल।
 
चारे महिनवा जाड़े लगत हे
जाड़े लगत हे हो जाड़े लगत हे
थर थर कांपे करेजवां हो
थर थर कांपे करेजवां अरे संतो
फागुन मस्त महीना रे लाल।
 
चारे महिनवा घाम लगत हे
घामे लगत हे हो घाम लगत हे
टपटप चुहे ला पछीना हो
टपटप चुहे ला पछीना अरे संतो
फागुन मस्त महीना रे लाल।
 
जासल गीत
 
अरे हां रे जासल – जासल बुड़गे कउहा में
अरे हां रे जासल – जासल बुड़गे कउहा में
अरे हो ओ ओ ओ ओ ओ रे जासल,
जासल बुड़गे कउहा में
मुड़ टांगे सींह दुवार, अरे मुड़ टांगे सींह दुवार
रे जासल – जासल बुड़गे कउहा में
तो कइसे जासल बुड़गे कउहा में?
मुड़ टांगे सींह दुवार
रे जासल – जासल बुड़गे कउहा में
जासल बुड़गे कउहा में – जासल बुड़गे कउहा में
मुड़ टांगे मुड़ टांगे मुड़ टांगे सींह दुवार
रे जासल, जासल बुड़गे कउहा में।
 
झूला
 
अरे ककनी मांजे रे तरैया में ककनी
अरे हां हां तरैया में ककनी मांजे रे।
ककनी मांजे बंहुटा मांजे मांजे गले के हार
भला हो मांजे गले के हार
ककनी संग मं बहुंटा मांजे, मांजे ये सोलासिंगार
तरैया में ककनी, अरे हां हां तरैया में ककनी मांजे रे।
 
सुत के ऊठे लोटा धरे अउ सोझ्झे तरिया जाय
भला हो सोझ्झे तरिया जाय
तरिया पार में कुकुर कुदाये, लोटा छोड़े घर आये
तरैया में ककनी
अरे हां हां तरैया में ककनी मांजे रे।
 
संझा आगे तभो चलत आपुस मं हंसी ठिठोली।
कोन बरज सकिहय कोई ला आय सुहावन होली।
ऐ होली, तंय हा इसने हर बछर दउड़ के आबे।
दुश्मन तक ला मित्र बनाके ओकर गला मिलाबे।
 
'''गंहुवारी पांत समाप्त'''
</poem>
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