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याने मंय सफ्फा बोलत हंव – होइस हमर आज तक लूटहमर वंश अब होय सुरक्षित, ओकर शोषण हा रुक जाय।मोला भले क्रूर समझस तंय – पर मनबोध के तिर झन जावओकर अगर प्राण जावत हे, सुख पाहंय भावी संतान।”सुनत गरीबा सांय हो जाथय लेकिन करत समीक्षा।वाजिब मरम ला समझिस तंहने तथ्य के पीयत मानी।किहिस गरीबा -”मंय मानत हंव, करत हवस तंय बोली ठोंकलेकिन मोर गोड़ नइ लहुटय, मंय जावत मनबोध बचाय।यदि मनबोध के जान हा जावत, निश्चय होत कलंकित काम-शांति के घर के दरवाजच मं, पुजवन होवत बाल अबोध।हमर हाथ ले हिंसा होवत, अतिथि वंश धरही ओ राहहिंसक उग्र आतंकी बनिहय, केंवरी हाथ गरम अस खून।मंय मनबोध बचा के लाहंव, भावी वंश परय ए छाप –कठिन प्रश्न के उत्तर लानय, शांति अहिंसा के रस मेल।धनसहाय ला तंय झन घबरा, अब नइ करन सकय नुकसानजमों डहर ले ओहर घिरगे, करन सकय नइ अत्याचार।बुझत दिया हा अति तेजी बर, ओकर बाद चुमुक बुझ जातधनवा हा अंतिम लाहो लिस, होत खतम ओकर वर्चस्व।मोर बात ला तंय सुन ले- सबझन साथ बुता तंय आगयदि आगी हा गांव मं बगरत, सब कलंक चढ़िहय मुड़ तोर।”क्रांति के बाद शांति लाये बर, साथ देखाय अहिंसक नीतिचलत गरीबा आगी कोती, अंदर घर मं करिस प्रवेश।आगी हा धधकत हे धकधक, कुहरा धुआं भरत हे नाकदेंह भुंजावत गिरत पसीना, मगर गरीबा शक्ति लगात।कठिनाई संग लड़त गरीबा, अमरिच गे बालक के पासपर मनबोध हिलत ना रोवत, परे खोंगस जइसे मृत लाश।टप चिपोट धर हटिस गरीबा, बालक ला धरे प्राण समानअड़चन टरिया पांव बढ़ावत, कतको बिपत सकिस नइ रोक।भीड़ के तिर आ जथय गरीबा, गश खा गिरगे बालक साथमनखे दउड़ उठा लिन झटपट, ताकि बिपत हा झन बढ़ जाय।तिरिया मन हा भिरे कछोरा, अगिन बुझावत जल ला लानपानी हा यदि कमती होवत, कइ मनखे लानत हें दौड़।सनम के मुंह ले बहत पछीना, देहं हा थक के चकनाचूरलेकिन भिड़ के आग बुझावत, दूसर ला देवत उत्साह।आखिर आगी चुमुक बुझागे बढ़ नइ पाइस ज्वाला।सुन्तापुर हा बचिस सुरक्षित तब खुश हें नर नारी।अब मनबोध गरीबा मन के, जखम खतम बर चलत उपायअै स चिकित्सक खबर अमर के, करत दुनों झन के उपचार।पात दवई मनबोध गरीबा, खावत दवई नियम के साथथोरिक दिन मं स्वास्थय हा लहुटिस, दरद खतम मिटगे सब घाव।फगनी सत्य तथ्य ला जानिस, धनवा रखे रिहिस पेट्रोलगांव साथ अरि ला भूंजे बर, रचे रिहिस षड़यंत्र कठोर।फगनी हा धनवा ला बोलिस -”ठंउका मं तंय अड़बड़ क्रूरगांव नष्ट बर तंय सोचे हस, पर ए बात रखे हस याद-इही गांव मं हम तक रहिथन, हम्मन साथ मं बर के राखयदि पर बर खोधरा कोड़त हन, ओमा जाहय हमरो जान?मंय हा आग लगाये हंव तब, अैास कलंक मुड़ी पर मोरमंय षड़यंत्र ला कुछ नइ जानंव, लेकिन मुड़ पर चढ़गे पाप।पर ग्रामीण के कर्म ला परखव – जेला हम मानत हन शत्रुओमन मृत्यु के गाल मं जावंय, उंकर विरुद्ध चले हन चाल।हमर पुत्र मनबोध ला ओमन, आगी ले रक्षा कर लैनदुख के समय मदद ला बांटिन, ओमन आंय भला इंसान।तंय हा क्रूर हठी मनखे अस, तोर मोर अब नइ संबंधमंय मनबोध ला साथ मं लेगत, बासा करिहंव अन्ते ठौर।”फगनी हा मनबोध ला पकड़िस, रेंगिच दिस धनवा ला छोड़ओहर दुखिया के घर चलदिस, अपन बिपत ला फोरिस साफ।दुखिया हा फगनी ला रख लिस, इज्जत देवत मीठ जबानकुछ दिन हा इसने बीतिस तंह, फगनी मं आवत बदलाव।एक रातकुन नींद ला लेवत, देखत हे सपना मं दृष्य-धनवा आये हे ओकर तिर, पश्त दिखत हे जेकर हाल।धनवा बोलिस -”साथ अभी चल, मोर कुजानिक ला तंय भूलतोर सलाह सदा मंय सुनिहंव, मंय तोला देवत विश्वास।”फगनी हा झटकारिस तंहने, धनवा हा चलथय अउ चाल-फट मनबोध ला कबिया लेथय, अपन साथ मं धर के जाय।फगनी हा मनबोध ला झटकिस, ओला रखे स्वयं के पासऊपर दृष्य स्वप्न मं देखत, पर वास्तव मं घटना और। –फगनी हा मनबोध ला पकड़े, कबिया रखे लगा के जोरतब मनबोध कल्हर के रोवत, ओकर तन भर भरगे पीर।दूसर कमरा मं दुखिया मन, दुखिया इहां दउड़ के अैिसफगनी ला हेचकार उठाइस, अउ मनबोध ला देवत स्नेह।दुखिया हा फगनी ला पूछिस -”रोवत कार तोर मनबोधतंहू दिखत हस बेअकली अस, काय बात तंय फुरिया साफ?”फगनी मुंह ला करू बनाथय, फुरिया दिस सपना के हालकहिथय -”जेकर संग नफरत हे – धनवा सपना मं दिख गीस।मंय हा ओला छोड़ डरे हंव, टूटे हे अब ओकर साथओकर ले मतलब नइ मोला, ओकर पास कभू नइ जांव।”दुखिया थोरिक हंस के बोलिस -”मोर बात झन मान खराबधनवा साथ करत तंय झगरा, ओला मानत शत्रु समान।पर धनवा हा तोरे दिल मं, ओकर करत सदा तंय यादनर नारी मं जे आकर्षण, ओहर सत्य प्राकृतिक आय।
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