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07:06, 18 जनवरी 2017 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=मिलन मलरिहा
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<poem>
आथे ईहा जेनहा, एकदिन धुर समाय।
नसवर हे सनसार जी, डोकरा बनत जाय।
जाना सबला छोड़के, काहे गरभ दिखाय।
तन हे बमरी ठूड़गा, चुल्हा ले जोराय।
सबला जाना एकदिन, खालि हाथ सकलाय।
कोन बात के मोह हे, का बात के दुखाय।
का बात गरभ डोकरा, मोला नई बताय।
पारी तोरे आज हे, पाछु मोला बलाय।
एक झ जाबे तै बबा, कोनो संग न आय।
सुवस्थ रहे मा सबझन, चूस चूस के खाय।
घिलरगे जेनदीन तन, ओदिन जी फेकाय।
दात सबो टूटगे, अब कछु नई चबाय।
भारी होगे दरद हा, सुमरय लउहा उठाय।
बेटा-पत्तो छोड़के, सब दुरिहा हट जाय।
</poem>
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