2,708 bytes added,
11:50, 23 जनवरी 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मिलन मलरिहा
|संग्रह=
}}
{{KKCatGeet}}
{{KKCatChhattisgarhiRachna}}
<poem>
काबर मति छरियाथच बबा
तोरगोठ कोनो नइ मानय जी
उमर खसलगे झीन गुन तैहा
बिगाड़य चाहे जतनय जी
दिन उंकरे हे मानले तय
संसो टारके चुप देखव जी
करेनधक सियानी नवाजूग हे
कलेचुप किस्सा सुना जी
तोर बनाए नइ बनय कछु
फेर का बात के मोह तोला
का बात के मया जी
का बात के गरभ हे सियान
मोला तय बताना जी
कतेक रुपिया कतेक पईसा
कतेक साईकिल गाड़ा भईसा
ए जिनगी के ठुड़गा बमरी
एकदिन चुल्हा म जोराही
जाए के बेरा अकेल्ला जाबे
कोनो संग म नई जाही
जिनगी के आखरी बेरा
सब्बो दूरिहा हट जाही
दूई दिन रो-गा के ओमन
महानदि म तोला फेक आही
दसनहावन म जम्मो जुरके
तोर बरा सोहारी ल चाबही
तय ह सिधवा गियानी बने
लईका होगे आने- ताने
चारो कोती तय मान कमाएँ
नाती-पोती सब धूम मचाएँ
बनी-भूति, कमा-कोड़ के
खेत बारी-भाठा ल सकेले
टूरा-टूरी फटफटी खातिर
छिनभर म ओला ढकेले
तोर खुन-पसीना के कमाई
किम्मत दूसर का जानय जी
गाँव गाँव तोर गियान फइले
घरो-घर तोर बात म चले
अपन घर-छानही धूर्रा मईले
जइसे दिया तरी मुंधियार पेले
अब कब आही तोर घर अंजोर
बइठके डेहरी करत सोंच
अंगाकर रोटी ल टोर-टोर
चार कोरी बेरा जिनगी पहागे
नाती छंती के दिन आगे
अब बनावय चाहे बिगाड़य जी
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader