1,393 bytes added,
17:58, 23 जनवरी 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अरुण कुमार निगम
|संग्रह=
}}
{{KKCatChhattisgarhiRachna}}
<Poem>
हाँसत गावत जीयत जावौ, पालव नहीं झमेला
छोड़ जगत के मेला – ठेला, पंछी उड़े अकेला।
बड़े-बड़े मनखे मन आइन, पाइस कोन ठिकाना
चार घड़ी के रिंगी – चिंगी, तेखर बाद रवाना।
जइसन जेखर करम रहे वो, तइसन नाम कमाये
पूजे जाये कोन्हों मनखे, कोन्हों गारी खाये।
कोन इहाँ का लेके आइस, लेगिस कोन खजाना
जुच्छा आना सुक्खा जाना, का सेती इतराना।
माटी मा माटी मिलना हे, इही सत्य हे भाई
बिधुना के आगू मनखे के,चलै नहीं चतराई।
कोट-कछेरी पाप-पुन्न के, माँगै नहीं गवाही
बने करम के बाँध मोठरी, इही संग मा जाही।
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader