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तुम्हारा तो...—
लोहा मान गए,
पितर पक्षीय पितृपक्षी सभ्यता के लोग।भाई नागार्जुन ! आज नहीं तो कल-—परखेंगे, सूँघेंगे, संस्कृति की गंध।गन्धभाई नागार्जुन ! तुम्हारा तो-
लोहा मान गए
हज़ार-हज़ार चुनौतियों के प्रश्न।
पक्ष या विपक्ष...—
अपनपौ या विपनपौ में रहे
बात की बात रही - — भाई नागार्जुन!
जियो सौ वर्ष पूरे, कालबद्ध करते।
मेरा लोहा...— लोक-जीवन की जठराग्नि में तप रझा रहा हैलाल हो रहा है — भाई नागार्जुन!
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