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चेतना / मैथिलीशरण गुप्त

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तेरा कर्मक्षेत्र बड़ा है,
पल पल है अनमोल।
अरे भारत! उठ, आँखें खोल ॥खोल॥
बहुत हुआ अब क्या होना है,
तेरी मिट्टी में सोना है,
तू अपने को तोल।
अरे भारत! उठ, आँखें खोल ॥खोल॥
दिखला कर भी अपनी माया,
देकर वही भाव मन भाया,
जीवन की जय बोल।
अरे भारत! उठ, आँखें खोल ॥खोल॥
तेरी ऐसी वसुन्धरा है-
अब भी भावुक भाव भरा है,
उठे कर्म-कल्लोल।
अरे भारत! उठ, आँखें खोल ॥खोल॥
</poem>
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