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गळगचिया (4) / कन्हैया लाल सेठिया
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09:41, 4 मार्च 2017
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दूबड़ी पूछ्यो - झरणां, तूं चनेक ही सिंचल्यो कोनी रवै, तूं पून को जायोड़ो है के?
झरणूं बोल्यो - भली पिछाण करी? मैं तो डूंगरां रै जायोड़ो हूं जका पसवाड़ो ही को फेरै नीं!
</poem>
आशीष पुरोहित
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