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एक दिन पून्न‘र पाप अचाणचूका ही एक चौरस्तै पर आ मिल्या पून्न साव उघाड़ो हो‘र पाप लँगोट बाँघ राखी ही,
पाप बोल्यो पून्न तनै नागै फिरतै न थोड़ी घणी ही लाज कोनी आवै केे ? पून्न कयो पाप जकी बगत ही तूँ म्हारै मन में आसी में ही थाँकाळी जिंया ढ़क्यो ढ़ुम्यो रया करस्यूँ ।
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