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मिलन / कर्मानंद आर्य

162 bytes removed, 05:37, 30 मार्च 2017
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लड़कियां जो सस्ता सामान बेचकरपैरों की धूल चढ़कर बैठ जाती है माथे परलोगों को लुभाती हैंउसे उतारता नहीं हूँलड़कियां तुमसे प्यार है तो तुम्हारी धूल भी पसंद है मुझे यानी प्यार में सुखी होने के लिएवह सब करता हूँ जो जहाजी बेड़े पर चढ़ने से पहलेपसंद भी नहींलड़कपन पुरुष का शिकार हो जाती हैंअहंकार नहींउन्हीं को कहते हैं काठमांडू का दिलयह प्यार हैपहाड़ तो एक बहाना जिसमें बन जाना होता हैछोटाउससे भी कई गुना शक्त झुक जाना होता है वहां की देहजमीन तकउससे भी कहीं अधिक सुन्दर हैंदेहों के पठारचलना होता है लंगड़ाकरगिरकर, और अबकी बार जब भी जाना नेपालगिरना होता है उसका बचपन जरुर देख आनायह प्यार ही हैझुकता हूँ, चलता हूँ, दौड़ता, हांफता हूँफिर गिर पड़ता हूँगिरकर होता हूँ सुखीहोटल इसी क्रम में बर्तन धोते किसी बच्चे से ज्यादा चमकदार चढ़ती है धूल, थकती हैं उनकी आँखेंसाँसेंनेपाल में आँखे देखनाथाईलैंड कोई पड़ाव नहींआताजो आवश्यकता से अधिक गहरी और बेचैन हैंफिर दिल्ली प्यार के एक ऐसे इलाके में घूमने जानालिएजिसे गौतम बुद्ध रोड कहते जाने कितने बरस, जाने कितनी सदियाँबीत चुकी हैंजो कई हजार लोगों को मुक्त करता दौड़ रहा हूँ, भाग रहा हूँ मिलन की चाह हैउनके तनाव और बेचैनी सेवहां ढूँढना वह लड़की जो सस्ता सामान बेचकरजहाज ले जाती अभी तक आधा अधूरा है अपने गाँवमिलन
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