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अस्वीकरण
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हिरोशिमा / अज्ञेय
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,
17:04, 27 मई 2008
छायाएँ मानव-जन की
नहीं
मिटी
मिटीं
लंबी हो-हो कर:
मानव ही सब भाप हो गए।
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Tusharmj