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05:34, 20 अप्रैल 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
|संग्रह=बूँदे - जो मोती बन गयी / गुलाब खंडेलवाल
}}
[[category: कविता]]
<poem>
तुमने कहा था--
तुम प्रतीक्षा करना
मैं इन खँडहरों से घूमकर आती हूँ,
जरा देर को इन पाषाण-मूर्तियों से
अपना मन बहलाती हूँ.'
और तुम फिर कभी लौट कर नहीं आयी.
मैं आवाज़ पर आवाज़ देता रहा
किन्तु हर बार
मेरी प्रतिध्वनि ही मुझसे आकर टकरायी.
'ओ सुकुमारी!
क्या तुमने भी वहाँ
अधीर हो-होकर मुझे पुकारा था!
अपने चारों और घिरी काली, पत्थर की दीवालों पर
बेबसी से सिर मारा था!'
आह! जब तुम्हारी उस विकलता का ध्यान आता है
तो अपना सारा दुख-दर्द भूलकर
मेरा हृदय तुम्हारे दर्द में तड़पने लग जाता है!
<poem>