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{{KKRachna
|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल

|संग्रह=बूँदे - जो मोती बन गयी / गुलाब खंडेलवाल
}}
[[category: कविता]]
<poem>
मुझे स्वीकार मत करना
अंतिम सांस तक
अंतिम घड़ी तक,
मुझे स्वीकार मत करना
हृदय फट ही क्यों न जाय!
धुरी अपनी छोड़ से धरती,
आकाश उलट ही क्यों न जाय!
पर तुम प्यार मत करना.
हम में से कोई कुछ भी नहीं कहे,
जैसे सब-कुछ ढँका-ढँका है अपने बीच,
अंत तक वैसा ही रहे;
आँसू उधार मत करना.
नमकमिले होठों से चूमकर
गीतों को मेरे दुहरा तो लेना अकेले में,
पर उन्हें झूम-झूमकर
गले का हार मत करना
मुझे स्वीकार मत करना
<poem>
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