मैं जो कुछ भी लिखता जाता था
उस पर हंसी हँसी आती थी
जगह-जगह वर्तनी के निशान लगाने पर
और महसूस करता एक अधूरा पाप
जब लिखे पर कॉमा अर्धविराम लगाता
आश्चर्यजनचिन्ह विस्मयबोधक चिन्ह पर
या सेमिक़ॉलन पर
मेरे नामराशि वाले बन गए थे जो
तीस मारखां मार खाँ बनने लगे
वे सभी सुबह की मुर्गे की बांग से ही पहले
आख़िरकार डूबकर उठ गए संसार से
ताल और कुएं कुएँ में डूबकर
पेरसे और इलियट के साथ
इसी दौरान मैं फंसा फँसा उलटते-पलटते
उस पंचाग में
जिसे शायद ही किसी ने तलाश किया हो
बिना कोई सितारा तलाशे आसमां आसमाँ में
घुप्प नहीं हो गया जो अंधेरे में
रसायनों को पीकर
उस आसमां आसमाँ के साथ-साथ चलते हुए
जिसके लिए नहीं है कोई प्रतीक
तभी मैं धर दूंगा उन सबको चुपचाप
मैं रखूंगा निगाह जो बन रहे होंगे तीस मारखांमार खाँ
प्रगट हो चुके होंगे वे या नहीं
वे होंगे या काल्पनिक ही सही
वे चाहे घुस जाएं जाएँ किसी भी नए ग्रह में
मैं जकड़ूगा जकडंगा उनको
शिकंजे में अपने।