|संग्रह=सुकून की तलाश / शमशेर बहादुर सिंह
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'''(जो एक शादी के मौक़े पर कहे गए)
और काफ़िले-दर्द पर आपका दौलते-शरीफ़
भूल गए हम मगर क़ौलो-क़रार याद है
फिर शोरे-अनादिल आह ज़माना भी है, फिर गुंचे परीशाँ हैं : ए बादे-सबा, लेकर क्या नामए-यार आई? हर एक शगूफ़ा यह कहता हुआ खिलता है। "शायद कि बहार आई! शायद कि बहार आई!"कुछ आप ही नहीं सितम ज़रीफ़
(19451955 में रचित)