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हाय, वे साथी की चुम्बक लौह से जो पास आए,
पास क्या आए, कि ह्र्दय हृदय के बीच ही गोया समाए,
दिन कटे ऐसे कि कोई तार वीणा के मिलाकर,
एक मीठा और प्यारा ज़िन्दगी का गीत गाए,
वे गए तो सोच कर ये लौटने वाले नहीं वे,
खोज मन का मीत कोई , लौ लगाना कब मना है?
है अन्धेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है?
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