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{{KKRachna
|रचनाकार=उगामसिंह राजपुरोहित `दिलीप'
|अनुवादक=
|संग्रह=थार-सप्तक-2 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
अबोली छै आ ज़िंदगी
याद आवै साथिड़ा जिणां रै साथै खेलता
उण समै ना कोई छल ना कपट हो
ना हो कीं गमणै रो डर
पण पावणं री होड़ में आज गमा दिया दोस्त।

रूंखड़ा माथै अेक-दूजां रा नाव मांडता
गलियां-पोळज में साथै रमता
लुकछुप घरां सूं तलाबां तैरण जांवता
ओळयूं घणी आवै उण भाईलां री।

मिळां जदै उण साथियां सूं
पुराणौ समै याद आवै
समै रो ओ केड़ो पतियारो
उण साथियां मायनूं गमगो वो हेज
अबोली छै आ ज़िंदगी।
</poem>
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