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11:41, 11 जून 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=उगामसिंह राजपुरोहित `दिलीप'
|अनुवादक=
|संग्रह=थार-सप्तक-2 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
भाई भरत इतरो क्यूं बदळ गियो है
ऐड़ो भी कांई होयो रीस सूं भरयो है
पैलां तो घणो ही भोळो थो
जणै कांई होयो आज!
थूं फिर गिया है।
थोड़ी जमीं थोड़ा पीसा
कांई आज इतरो मोटा होगिया
भाई सूं भाई लड़ दुसमी-वैरी होगिया
पै‘ली घणां ही राजी-बाजी हा
जणै कांई होयो आज!
थूं बदळ गियो है।
नैना हां जणै रमता सागै
पढणै भी जाता साथै-साथै
भेळा बैठ ही जीमता हा
हर टेम साथै रैंवता हा।
म्हनै तो अबार भी याद है
कोई कैवतो म्हनै खरो-खोटो
लड़ालाग जावतो हो थूं तो
थारो काळजो सहण कोनी कर पावतो
जणै भाई आज वो थारो जीव कठै है।
</poem>
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