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11:42, 11 जून 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=उगामसिंह राजपुरोहित `दिलीप'
|अनुवादक=
|संग्रह=थार-सप्तक-2 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
उगतो सूजर कैवे गाथा
कट गई रै काळी रातां
सुणै डावड़ा समै री बातां
करतो रैवै कोसिस सिदा
सफल हो जासी थारी मेहणत
जको होयो वो तो बीतगो भायां
रात गई रातै रै, भूलजो सगळी बातां
नूवों सुवेरो आवै कर उण री बातां
ऊगतो सूरज कैवे गाथा
कट गई रे सारी काळी रातां
ऊगतो सूरज कैवै बातां...।
</poem>
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