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03:21, 14 जून 2017 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=मनोज देपावत
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|संग्रह=थार-सप्तक-3 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
रिसतो
थारो अर म्हारो
कित्तो अजीब है!
थूं उम्मीद है; हूं सुपणों
कदी-कदी लागै
थूं सांची प्रेरणा है
हूं कोरी कल्पना
थूं अणज्योड़ो जुड़ाव है
हूं जाण्यों-पैच्याणों भटकाव
थारै में बणण रो हौसलो है,
म्हारे में टूटण रो डर
थूं पैदा करयोड़ो ऐसास है
हूं बिन बुलायोड़ो बैम
फेर भी ईयां क्यूं लागै जाणै
सुपणो आवण सूं ई तो उम्मीद बंधे
जीं री उम्मीद हुवै
वीं रो ई तो सुपणो आवै
थांनै पैदा करण खातर ई तो
लोग म्हनै देखै
कित्तो अजीब है
थारो अर म्हारो
रिस्तो।
</poem>
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