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|रचनाकार= आनंद कुमार द्विवेदी
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बे जरूरत इसे ख्याल समझा गया
कब यहाँ दर्द का हाल समझा गया

बात जब भी हुई मैंने दिल की कही
क्यों उसे शब्द का जाल समझा गया

महफ़िलें आपकी जगमगाती रहें
आम इंसान बदहाल समझा गया

हमने सौंपा था ये देश चुनकर उन्हें
मेरे चुनने को ही ढाल समझा गया

हालतें इतनी ज्यादा बिगड़ती न पर
देश को बाप का माल समझा गया

हाल ‘आनंद’ के यूँ बुरे तो न थे
हाँ उसे जी का जंजाल समझा गया
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