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|रचनाकार= आनंद कुमार द्विवेदी
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बेवजह अब न रुलाये कोई
गर कभी अपना बनाये कोई

दिले-नादाँ को संगदिल करलूं
कैसे, मुझको भी बताये कोई

वो नहीं लौटने वाला लेकिन
रास्ते तो न मिटाए कोई

दर्द के फूल दर्द की खुशबू
दर्द के गाँव तो आये कोई

मौत आने तलक तो जीने दे
रात दिन यूँ न सताये कोई

जिनकी महलों से आशनाई हो
क्यों उन्हें झोपड़ी भाए कोई

काश वो भी उदास होता हो
जिक्र जब मेरा चलाये कोई

एक ‘आनंद’ भी इसमें है जब
खामखाँ खुद को मिटाए कोई
</poem>
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