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|रचनाकार= आनंद कुमार द्विवेदी
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करो कोशिश जिंदगी में रंग ला सकते हो तुम
जोर से चीखो कि सोतों को जगा सकते हो तुम

लाख शोषण जुल्म की गहरी जड़ें हों साथियों
मुझे पुख्ता यकीं है, उनको हिला सकते हो तुम

मत कहो ‘अपना मुकद्दर ही बुरा है’ दोस्तों
चाह लो गर तो मुकद्दर भी बना सकते हो तुम

मैं फ़लस्तीनी हूँ, लेबनानी हूँ, ईराक़ी भी हूँ
अब फ़कत मज़लूम हूँ मैं, साथ आ सकते हो तुम

गौर से देखो ये दौलत के पुजारी कौन हैं
याद रक्खो इन्हें जब चाहो भगा सकते हो तुम

आंसुओं को आँख में शोला बनाकर रोक लो
क्रांति क्या है फिर क़यामत को भी ला सकते हो तुम

इसे तुम ‘आनंद’ का शेर-ओ-सुखन मत सोंचना
ये दिलों की आग है, दुनिया जला सकते हो तुम
</poem>
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