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{{KKRachna
|रचनाकार=आनंद कुमार द्विवेदी
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|संग्रह=फुर्सत में आज / आनंद कुमार द्विवेदी
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<poem>
जिंदगी में कम से कम एक बार होना चाहिए
मेरी ख्वाहिश है सभी को प्यार होना चाहिए !

इश्क में और जंग में हर दांव जायज़ है, मगर
आदमी पर सामने से, वार होना चाहिए !

नाम भी मजनूँ का गाली बन गया इस दौर में
बोलो, कितना और बंटाधार होना चाहिए !

लैस है, ‘वृषभान की बेटी’ नयी तकनीक से ,
‘सांवरे’ का भी नया अवतार होना चाहिए !

हाय क्या मासूमियत, क्या क़त्ल करने का हुनर
आपका तो नाम ही , तलवार होना चाहिए !

आँख भी जब बंद हो और वो तसव्वुर में न हो
ऐसे लम्हों पे तो बस, धिक्कार होना चाहिए !

जिंदगी तुझसे कभी कुछ, और मांगूंगा नही
जिस तरह भी हो, विसाल-ए-यार होना चाहिए

खासियत क्या इश्क की ‘आनंद’ से पूछो ज़रा
सच बता देगा मगर, ऐतबार होना चाहिए !!

</poem>
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