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16:07, 17 जून 2017 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=आनंद कुमार द्विवेदी
|अनुवादक=
|संग्रह=फुर्सत में आज / आनंद कुमार द्विवेदी
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<poem>
अपने स्कूलों से तो, पढ़कर मैं आया और कुछ ,
जिंदगी जब भी मिली, उसने सिखाया और कुछ!
शख्त असमंजश में हूँ बच्चों को क्या तालीम दूँ ,
साथ लेकर कुछ चला था, काम आया और कुछ !
आज फिर मायूस होकर, उसकी महफ़िल से उठा,
मुझको मेरी बेबसी ने , फिर रुलाया और कुछ !
इसको भोलापन कहूं या, उसकी होशियारी कहूं?
मैंने पूछा और कुछ, उसने बताया और कुछ !
सब्र का फल हर समय मीठा ही हो, मुमकिन नहीं,
मुझको वादे कुछ मिले थे, मैंने पाया और कुछ !
आजकल ‘आनंद’ के, नग्मों की रंगत और है ,
शायद उसका दिल किसी ने फिर दुखाया और कुछ!
</poem>