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कुछ और दोहे / बनज कुमार ’बनज’
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09:29, 18 जून 2017
मरने की फ़ुर्सत मुझे, मत देना भगवान्।
मुझे खोलने हैं कई ,अब भी रोशनदान।
नहीं बढ़ाना चाहता, परछाईं पर बोझ।
करता हूँ कम इसलिए, क़द अपना हर रोज़।।
</poem>
अनिल जनविजय
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