786 bytes added,
14:32, 18 जून 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=आनंद कुमार द्विवेदी
|अनुवादक=
|संग्रह=जरिबो पावक मांहि / आनंद कुमार द्विवेदी
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
जब देखो
मेरे आसपास बिखरी पड़ी रहती हैं
मेरी ही अनगिनत शिकायतें
ज्यादातर तुमसे
कुछ ईश्वर से
और कुछ अपने आप से
असल में वो मेरी
उम्मीदें हैं
जो शिकायतों का भेष बनाकर
उन उनसे मिलती हैं
जिनसे वो हैं
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader