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15:21, 18 जून 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=आनंद कुमार द्विवेदी
|अनुवादक=
|संग्रह=जरिबो पावक मांहि / आनंद कुमार द्विवेदी
}}
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<poem>
एक तरफ जगत की सम्पति
और जगदीश स्वयं
दूसरी तरफ़ केवल तुलसी की एक पत्ती,
तुम्हारा नाम
वही तुलसीदल है,
मैं अपने पलड़े में जो भी रख सकता था
रखकर देख लिया
जैसे ही तुम्हारा नाम आता है
तृण हो जाता है
ये जगत
और मेरा
मैं !
</poem>