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05:54, 25 जून 2017 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=निर्मल कुमार शर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=निरमल वाणी / निर्मल कुमार शर्मा
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<poem>
जस मुंडा पर गा रह्या
निंदक पीठ फिरयाँ जो होय
निरमल मित्र न जाणिये
याँ स्यूं बड़ो न शत्रु कोय !!११!!
क्या होसी काल, कुण जाणियो
क्या हुयो काल, मत भूल
निरमल जो आज पिचाणियो
बो रचसी काल समूळ !!१२!!
जस गावे जो बिण बात ही
निरमल रंग बदलसी जाण
ज्यूँ मोडा टीबा रेत रा
बायरो बवे त्यूँ बदले ठाँव !!१३!!
करमहीण नहीं काम रा
ज्यूँ खारा सर-बाय
पस्र्योड़ा बिण बात रा
उगले कोरी खार !!१४!!
कीं बणे तो फिर घन श्याम बण
जळ घणो ही ज्याँ में होय
निज तत्व सबै करके अरपण
खुद उज्जवल निरमल होय !!१५!!
खिमता तय हर चीज री
मिनख, मशीन या कीं सामान
खिमता स्यूं बढ़ कर जो करे
निरमल खिमता खोसी जाण !!१६!!
नश्वर है सगली चीज, आतमा नश्वर कोनी
निरमल या बात समझ में म्हारे आवे कोनी
जो मरे नहीं आतमा, तो कैयाँ जुलम बढे है
ओछा-ओछा स्वारथ खातर मिनख लड़े हैं !!१७!!
चोखा कोनी नेता, ना ही चोखी है सरकार
ना चोखा अफसर सरकारी, कैयां पडसी पार
निरमल जद तक, कोरो रोणो रोता रेसो
कोनी पडसी पार, भंवर में गोता लेसो !!१८!!
राजतन्त्र हो, प्रजातंत्र या तंत्र किसो ही
जद तक अनपढ़ रेसी, जनता यूँ ही रोसी
निरमल साँचो राज, अगर, जनता रो चावो
टाबरियां ने खूब पढावो, खूब लिखावो !!१९!!
स्वारथ री नींव खड्यो जो ह्वे
रिश्तां रो घर बो काचो होय
जित्तो बेगो गिर जावे
निरमल बित्तो आछो होय !!२०!!
</poem>