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06:13, 25 जून 2017 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=निर्मल कुमार शर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=निरमल वाणी / निर्मल कुमार शर्मा
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<poem>
दिन-रात चाकरी कर-कर, हो गयो कायो रे
साथीडाँ मैं तो ब्याव करयो, पछतायो रे !!
चम्-चम् करते चंदे मन पे डोरा डाल्या
रॉकेट बणा, उड़ पूग्यो तो भाटा लादया
मखमली धरा छूटी, ओ खाडो पायो रे
साथीडाँ मैं तो ब्याव करयो, पछतायो रे !!
पालकां री छइयां सिमट गयी
जुल्फां रा बादळ बिखर गया
मधुमास रो मधु निठ्ग्यो, तावडियो आयो रे
साथीडाँ मैं तो ब्याव करयो, पछतायो रे !!
आज़ाद गगन रो पंछी हो, मन रो राजा
फंस गयो जाल में, सुण-सुण कर मीठी बात्याँ
जंगल रो शेर, देखो, पिंजड़ा में आयो रे
साथीडाँ मैं तो ब्याव करयो, पछतायो रे !!
मीठे सुपनां री, छोडो थें अब बातड़ली
सो सकूं चैन सूँ, ढूंढूं बा इक रातड़ली
नींद रात री, दिन रो चैन गंवायो रे
साथीडाँ मैं तो ब्याव करयो, पछतायो रे !!
</poem>