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|रचनाकार=निर्मल कुमार शर्मा
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|संग्रह=निरमल वाणी / निर्मल कुमार शर्मा
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<poem>
आदमी रह्यो न देखो-देखो आज आदमी
आदमी ने खाय रह्यो, देखो आज आदमी !!

धरती बांटी, आभो बांटयो, बाँट डाल्यो नीर भी
धर्म री दीवार खींच, बांटयो मालिक पीर भी !
नैणा रे नीर री, पीर यो न बाँट सक्यो
खेंच डाल्यो लाश सूँ, कफ़न रो कोरो चीर भी !

मिनखपणों मानखे रो भूल गयो आदमी
आदमी ने खाय रह्यो, देखो आज आदमी !!
हाउडे सूँ डरतो चिपतो, भूल गयो छाती बा
भूल्यो संस्कार री, गुरां पढाई पाटी बा !
जायदाद बाप री, में सीर यो न भूल सक्यो
माँ-जाया दूर, भूल्यो माँ रे दूध री मिठास भी !

रिश्तां ने ताकड़ी में, तोल रह्यो आदमी
आदमी ने खाय रह्यो, देखो आज आदमी !!

जीवतां जिमायो कोनी, मरियां मौसर अनाप
ता जिन्दगी उघाड़े लारे, कर रह्या ओढावणी !
माल यूँ उडाय रह्या, ब्याव ज्यूँ मंड्यो है कोई
भूल रह्या है बगत री मार सूँ, बच्यो ना कोई !

झूठी बड़ाई में बड़ाई, खोय रह्यो आदमी
आदमी ने खाय रह्यो, देखो आज आदमी !!

सोवतो जगाणो सोरो, जागतो जगावे कौन
सूजतो भी खाड में, पड़े अहि तो बचावे कौन !
संस्कृति ने छोड़ के, मरजादा ने मरोड़ के
खुद मारे खुद री आतमा, तो बोलो फिर बचावे कौन !

निरमल बणेलो भाईयाँ, फिर आदमी कद आदमी
आदमी ने खाय रह्यो, देखो आज आदमी !!

</poem>
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