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|संग्रह=निरमल वाणी / निर्मल कुमार शर्मा
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<poem>
समाजवाद रो चस्को लाग्यो
बणग्यो समाजवादी
टेरीकोट पेरणी छोड़ी
अर अपणा ली खादी

सोच्यो बाँट-बाँट अर खास्याँ
बाँट-बाँट के करस्यां काम
सुखी रेवसी जनता सारी
भारत रो भी होसी नाम

पण आग लगे इण बैरण ने
आ कमर-तोड़ मँहगाई आयी
कूकण लाग्या टींगर घर में
आर बक्कण लागी लुगाई

बिन्ने भाई कोनी
म्हारी आ नई चढ़ाई
अर नित सुन्नावण लागी
बा तो नई -नई चौपाई

एक रात जद घर पूग्यो
टाबरिया बारे ऊबा हा
झंडी तो लाल दिखाई बाँ
पण म्हन्ने आवे नींद रा झोबा हा

बिन सिंगळ गाडी लेण चढी
तो, टक्कर तो होणी ही थी
पण, इत्ती कोजी होवेला
आ, सुपनां में ना सोची ही

आँख्यां लाल, बिखरयोड़ा बाल
हाथ में मूसळ, नहीं, बेलणिया डंडी ही
घरवाळी म्हारी, रामदुलारी
बणी खड़ी रणचंडी ही

मैं बोल्यो बात हुई काईं
क्यूँ सूज्यो है थोबड़ थारो
इण कम्पाणी- बर्फ़ाणी ठण्ड में
ओ चढ़ रह्यो कैयाँ पारो

बा बोली घर में चून नहीं
अरे, तेल नहीं अर लूण नहीं
काईं ठा किस्या मिनख हो थें
घर वाल़े रा भी गुण नहीं

घरवाळी री बात्याँ सुण कर
मैं चारोँ खाणा चित्त हुयो
पण मैं धणी बिरो, बा बाकी कियां
आ सोच कमर कस हुयो खड्यो

मैं बोल्यो घर में पडी रह्वे
दुनिया री तूं काईं जाणे
बिण समाजवाद आया, यूँ ही
भूखों मरणो पडसी थानें

बा बोली साजन भोला हो
थानें ऊपाव बताऊँ जी
मीठी बात्याँ सुण मैं बोल्यो
हाँ, हुकम करो, फरमाओ जी

थें मानो पिव प्यारा
इण एक बात ने
काईं पड्यो है थाणे
इण समाजवाद में

अरे, धार लगावो थोड़ी
इण भोटी मत में
पैली खुद रो घर भरो
समाज बाद में

खादी ने फेंको खाडा में
नवा पेन्ट-शरट सिड़वाओ जी
दो मारो इन्ने- बिन्ने की
अर घर सूँ भूख भगावो जी

जद जबर शेरणी गुर्राई
भेजा में मत पाछी आई
पैली भी चरणां री रज हो
अब भी पग्ल्याँ रो रेतो हूँ

पैली खादी अब टेरीकोट में
वो ही सागी नेतो हूँ
मैं वो ही सागी नेतो हूँ !!

</poem>
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