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|रचनाकार=विजय सिंह नाहटा
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|संग्रह=थार-सप्तक-4 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
अनघड़ भाठो हूं रूपहीण
साकार नीं म्हां में म्हारो ई अणंत
इक धार-इक रस
लयबंधी
छिणी री अचाणचक मार
दीठ में ल्यावै अंग पड़अंग
तरास परो अणसैंधो कलाकार
कठै किण दिठाव सूं पाछा होवो आप साकार।

</poem>
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