Changes

'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजय सिंह नाहटा |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=विजय सिंह नाहटा
|अनुवादक=
|संग्रह=थार-सप्तक-4 / ओम पुरोहित ‘कागद’
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
जो आ एक भोर है तो
आ किण रो उळथो है
रात रात रै ढळतै अंधारै रो
का फेर
पुहुप में गुंथीज्योड़ी सौरम रो
का ओस में घुळै मून रो
तो पछै आं सिंझ्या किण रो पाछोपाठ है।

मून बगत
बगतो लगोलग
बैंवतै झरणै रो संगीत
किणी सुवाल रो पडूत्तर
असल में होवै कठै है।
थळ रै नीचै भी कांईं होवै
कोई आर-पार अंतहीण कड़यां

आभै रै पार कांई है विस्तार
कित्ता-न-कित्ता अणंत।
जका आपरै उठाव में
सगळां नै साधै
करै धारण
फेर उण रो उठाव कुण साधतो होस्सी।
हरेक गोखड़ो खुलै एक रंगहीणै दिन में
कांईं ओ एक कविता विहूणै दिन रो उच्छब है।
जठै बडाई में अणथाग जीत-गीत है
पण ए नीं रैयो कविता में पिरोवण सारू पाछै कीं।

</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
8,152
edits