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नान्हा गीत (2) / भंवर कसाना

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|संग्रह=थार-सप्तक-4 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
कुरजां! थूं प्रीतां पाळी अे।
बरसां सूं अंतस री बातां
कैयी थां सूं आतां-जातां
उफण्यै जोबन दूध
नेह री छांटां राळी अे।
थारै स्हिारै बिरहण जीगी
जेर बिजोग बा हंसतां पीगी
सुण, थारै संगळी बैठ
बिजोगण रातां गाळी अे।
थूं सुहाग री धा बड़भागण
थारो चुड़लो अखंड सुहागण
आती जाती रीजै नितका
करस्या बातां भाळी अे।

</poem>
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