{{KKAnthologyMaa}}
[[Category:पंजाबी भाषा]]
<poem>मैं उस मिट्टी में से उगा हूँ<br>जिसमें से माँ लोकगीत चुनती थी<br><br>
हर नज्म लिखने के बाद सोचता हूँ-<br>क्या लिखा है?<br>माँ कहाँ इस तरह सोचती होगी!<br><br>
गीत माँ के पोरों को छूकर फूल बनते<br>माथे को छूते- सवेर होती<br>दूध-भरी छातियों को स्पर्श करते<br>तो चांद निकलता<br><br>
पता नहीं गीत का कितना हिस्सा<br>पहले का था<br>कितना माँ का<br><br>
माँ नहाती तो शब्द ‘रुनझुन’ की तरह बजते<br>चलती तो एक लय बनती<br><br>
माँ कितने साज़ों के नाम जानती होगी<br>अधिक से अधिक 'बंसरी' या 'अलग़ोजा'<br>बाबा(गुरु नानक) की मूरत देखकर<br>'रबाब' भी कह लेती थी<br><br>
पर लोरी के साथ जो साज़ बजता है<br>और आह के साथ जो हूक निकलती है<br>उससे कौन-सा साज़ बना<br>माँ नहीं जानती थी<br><br>
माँ कहाँ खोजनहार थी !<br>चरखा कातते-कातते सो जाती<br>उठती तो चक्की पर बैठ जाती<br><br>
भीगी रात का माँ को क्या पता !<br>तारों के साथ परदेशी पिता की प्रतीक्षा करती<br><br>
मैं भी जो विद्वान बना घूमता हूँ<br>इतना ही तो जानता हूँ<br>माँ सांस साँस लेती तो लगता<br>रब जीवित है!<br/poem>