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11:31, 26 जून 2017 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=संजय पुरोहित
|अनुवादक=
|संग्रह=थार-सप्तक-4 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
मानो क्यूं नी थे
बात न्याव री
लाठै आळै साम्हीं
करो थे लटूरिया
निबळै सायल नै
क्यूं हळकाओ
उपजाओ क्यूं रीस
बा ई रीस ई तो
करवावै आंदोलन
आ ई रीस खावै
सूंई छाती गोळ्यां।
छाती में धर बैर
क्यों उगाओ
बदळै रा आकड़ा-काकड़ा
जिण री फेंट में आय
मरै मिनख
पछै जामै रूदाळयां
मरियोड़ा री चितावां माथै
पैली लगाओ हाट
पछै पाड़ो हेला
कराओ राजीनावां
आप ई बताओ
मिनख मार‘र
कांई जरूरी है
राजीनांव माथै
रबड़ री मो‘र।
</poem>
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