1,180 bytes added,
16:50, 27 जून 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हरीश हैरी
|अनुवादक=
|संग्रह=थार-सप्तक-6 / ओम पुरोहित ‘कागद’
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
तू याद कर
थारी भैंस्या जद
जोहडै़ सूं निकळ'र
नाळी आळै दरडां कानी भाजगी
मैं थारली लाठी लेय'र
भैंस्यां नै पाछी टोर'र ल्यायो
लडा़ई रै काम आंवती आ लाठी
आपां दोनां नै प्रेम में
पतो नहीं किंकर जोड़ दिया
आज भी
मैं जद कोई लाठी पकडूं
लाठी रै दूजै सिरै
थारो ई हाथ देखूं
एक सैंधी सी बोली
म्हारै कानां में गूंजै
म्हनै दिखै
भाजती भैंस्या,
हेला मारती तू
का पछै गाम रो जोहड़ो!
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader