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{{KKRachna
|रचनाकार=ओम पुरोहित ‘कागद’
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|संग्रह=भोत अंधारो है / ओम पुरोहित ‘कागद’
}}
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<poem>
काचै पिंड बैठ
पाका सुपना
मत देख मनड़ा!

बगत री फटकार
गुड़कासी पिंड
पिंड भेळा
गुड़कता सुपना
खिंडैला पिंड सूं पैली!

मोह री
काची मटकी
काचो पिंड
काचा सुपना
ऐतबार किण रो
काचा मन
थूं कद सांचो!

पिंड पाळै
मनड़ा थंन्नै
खुद री रुखाळी
जद लदसी खुद
थूं कियां बचसी
पिंड सूं बारै
इणी सारु
जोगी जोग रच
थंन्नै मारै!
</poem>
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