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{{KKRachna
|रचनाकार=ओम पुरोहित ‘कागद’
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|संग्रह=भोत अंधारो है / ओम पुरोहित ‘कागद’
}}
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<poem>
कुण साकार
कुण निराकार
थकां भूख
भूख ई
पसरै-सांवटीजै!

भूख
अन्न री
धन्न री
मन री
ग्यान री
ध्यान री
परमाण री
कदै'ई निराकार
कदै'ई साकार
भंवै जगती में
भंवती भूख!
</poem>
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