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|रचनाकार=मधु आचार्य 'आशावादी'
|अनुवादक=
|संग्रह=अमर उडीक / मधु आचार्य 'आशावादी'
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<poem>
सुपना इज तो हुवै
जीवण रा आधार
इणी खातर रोज
आपां देखां बारम्बार
कीं बणण रो
कीं करण रो
कीं पावण रो
सुपनो अर सुपनो
पण
जद दुनिया साम्हीं आवां
खुद नै खाली हाथ पावां
नीं तो सुपना रैवै
नीं कोई रैवै सागै
सगळा देखतां ई भागै
सुपना पूरा करण खातर
पड़ जावै मिनखां रो अकाळ
अणचींत्यै बगत माथै ई
सुपनां नै खाय जावै
काळ।

</poem>
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