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10:25, 28 जून 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मधु आचार्य 'आशावादी'
|अनुवादक=
|संग्रह=अमर उडीक / मधु आचार्य 'आशावादी'
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<poem>
जित्ता भाई
बित्ता चूल्हा
कैवता ई रैवै लोग
पण
बाबोसा बतावै
पैलां घणा भाई
अेक चूल्हो
बरकत ई बरकत
न्यारा-न्यारा चूल्हा हुयग्या
घर मांय बापरग्यो
सरणाटो
हर चूल्है मांय अबै
आग थोड़ी
बरकत तो हुयगी गायब
घर -घर नीं रैयो
चूल्हां रो
समसाण बणग्यो
उणनै देख
मिनखपणो डरग्यो।
</poem>
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