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{{KKRachna
|रचनाकार=ओम पुरोहित ‘कागद’
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|संग्रह=भोत अंधारो है / ओम पुरोहित ‘कागद’
}}
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<poem>
घर में भी बसै
पेटां सूं अळगी
सगळां री
न्यारी-न्यारी भूख
जकी नीं मिटै
जीम्यां जीमण।

सुआरथ लपेटती
आ भूख भखै
नाता-रिस्ता रा मोह
आपसरी रा हेत
फोड़ै हक री हांडी
जकी भोळायÓर जावै
घर रा बडेरा!
</poem>
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