776 bytes added,
10:59, 28 जून 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=ओम पुरोहित ‘कागद’
|अनुवादक=
|संग्रह=भोत अंधारो है / ओम पुरोहित ‘कागद’
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
आभै में फिरै
गजबी बादळिया
गांणी-मांणीं
लियां पाणीं
बरसावै नीं पण छांट
ठाह नीं कांईं है आंट!
तिरसाया नीं मरै
जीव-जंत
आभै रै भरोसै
डरती-डरती
मुरधर धरती
आपरै अंतस
अंवेर लियो पाणीं
लारली बिरखा!
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader