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11:09, 28 जून 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=ओम पुरोहित ‘कागद’
|अनुवादक=
|संग्रह=भोत अंधारो है / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
आस रो डूंगर है
म्हारो गांव
इण रा भाखर
टूटै नीं किणीं सूं
ईसर-परमेसर
परकत खसै तोड़ण
जुगां सूं
म्हारै गांव में।
अठै
अटल ऊभी है
रेत रै कण-कण
जीया-जंत में
उतरती-पळती
पीढी दर पीढी
भरोसो बंधावती
अमर है आस
म्हारै गांव में!
</poem>
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