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12:19, 28 जून 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= मधु आचार्य 'आशावादी'
|संग्रह=अमर उडीक / मधु आचार्य 'आशावादी'
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<poem>
उण दिन
बो पैली बार मुळक्यो
जाणै आभै मांय
मोटो तीणो हुयग्यो
आज तांई
उणनै कदैई नीं आई हंसी
हरेक नै देखतो आंख्यां फाड़
पण खाली देखतो
कीं नीं बोलतो
पण आज तो गजब हुयग्यो
बो खाली देख्यो
अर हंसग्यो
म्हैं कनै पूग्यो तो देख्यो
बो काच साम्हीं ऊभो हो
उण मांय खुद नै ई देख ‘र
हंस रैयो हो।
</poem>
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