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12:26, 28 जून 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= मधु आचार्य 'आशावादी'
|संग्रह=अमर उडीक / मधु आचार्य 'आशावादी'
}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
आखरां री कारीगरी
सबदां रो मिठास
भावां रो खटास
फगत
तिरस ई तिरस
मिठास सूं कोई नीं हुवै आपणो
सबदां मांय घोळो मिठास
यादां री चासणी
तद ई बा बात
लागसी आपणी
किणी सूं तो करो
सुपनां री बात
तद ई यादां हुसी थांरी
सुपनां भी थांरा
अर आखर भी थांरा।
</poem>
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