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|रचनाकार=दीनदयाल शर्मा
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|संग्रह=रीत अर प्रीत / दीनदयाल शर्मा
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<poem>
जुवान होंवती
बेटी
जद
घर सूं
बारै जावै

तद
कित्तै लोगां री
भूखी आँख्यां रौ
सामणौ करै

उणां री
फब्तियां सुणै
अर फेर भी
बा
कित्ती सै'ज रैवै

पण
आपरै
मन री पीड़ा

बा
किणी नै
नीं कैवै ।

</poem>
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